Pt. Ganga Prasad Upadhyay
पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
६ सितम्बर १८८१ ई० को काली नदी के तट पर स्थित नंदरई (कासगंज) में जन्म हुआ। १० वर्ष की अवस्था में पिता का देहान्त हो गया। कष्ट के साथ हिन्दी और अंग्रेजी मिडिल कक्षाएँ उत्तीर्ण की। मैट्रिक होते ही सरकारी नौकरी करके परिवार का पालन प्रारम्भ किया। इण्टर, बी० ए० और एम० ए० प्राइवेट रूप से पास किया। १९१२ में एम० ए० अंग्रेजी विषय में और १६२३ में एम० ए० दर्शन विषय लेकर उत्तीर्ण किया। प्रारम्भ से ही प्रार्यसमाज के कार्य में रुचि थी। सरकारी नौकरी से प्रचार-कार्य में बाधा पड़ती थी, प्रतः पेंशन का लालच न करते हुए १९६८ में सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया, और डी० ए० वी० हाईस्कूल इलाहाबाद में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य करना प्रारम्भ किया। स्थानीय प्रचार के साथ-साथ आर्य प्रतिनिधि सभा के अधिवेशनों में भाग लेते रहे। लेखों तथा व्याख्यानों द्वारा आर्यसमाज की सेवा करते रहे।
दर्शन तथा सिद्धान्त-सम्बन्धी अनेकों उच्चकोटि के ग्रन्थ लिखे। १९३१ में 'आस्तिकवाद' ग्रन्थ पर 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' ने 'मंगलाप्रसाद पुरस्कार' प्रदान किया। सन् १९३१ में 'हिन्दी साहित्य सम्मेलन' के झांसी अधिवेशन में 'दर्शन परिषद् के सभापति निर्वाचित हुए। १९४१-१९४४ तक आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तरप्रदेश के प्रधान रहे। हैदराबाद-सत्याग्रह में श्री महात्मा नारायण स्वामी जी महाराज के आदेश से निरन्तर कार्य करते रहे। १९४६ से १९५१ तक सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली के प्रधानमन्त्री रहे। १९५० में 'वैदिक कल्चर' (अंग्रेज़ी) पर 'अमृतधारा पुरस्कार' मिला; उत्तरप्रदेश द्वारा १९५१ में 'कम्युनिज्म' ग्रन्थ पर, १९५२ में 'ऐतरेय ब्राह्मण भाष्य' पर और १९५५ में 'जीवन-चक्र' पर पुरस्कार मिले। १९५० में आर्य प्रतिनिधि सभा दक्षिण अफ्रीका की रजत जयन्ती में सम्मिलित होने गए और कई मास उस देश में वैदिक धर्म का प्रचार करते रहे। सन १९५१ में बर्मा, थाईलैंड और सिंगापुर प्रचारार्थ गए। आपने कश्मीर से लेकर सुदूरवर्ती दक्षिण तक आर्यसमाज का प्रचार किया। बंगाल, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और पंजाब में अनेकों अवसरों पर सम्मेलनों के अध्यक्ष बनाए गए। हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, फारसी, अरबी और अंग्रेजी भाषा पर उन्हें समान रूप से अधिकार था।
आपकी महती सेवाओं के लिए 'दीक्षा शताब्दी समारोह, मथुरा' के अन्तर्गत २५ दिसम्बर १९५९ को राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जी के करकमलों से अभिनन्दन-ग्रन्थ भेंट किया गया।
आपके दार्शनिक ग्रन्थों में आस्तिकवाद, अद्वैतवाद, जीवात्मा, Philosophy of Dayanand, Vedic Culture, Worship, Reason & Religion, Superstition, बारी ताला (उर्दू) मुख्य है। शांकरभाष्यालोचन, सायण और दयानन्द, राममोहन राय, केशवचन्द्र, दयानन्द, शंकर-रामानुज-दयानन्द, कम्युनिज्म, सर्वदर्शनसंग्रह, धम्मपद, Buddha & Dayanand तुलनात्मक ग्रन्थ हैं। सत्यार्थप्रकाश का अंग्रेजी अनुवाद Light of Truth नाम से किया है। मनुस्मृति, ऐतरेय ब्राह्मण, शतपथब्राह्मण, मीमांसादर्शन के हिन्दी रूपान्तर प्रस्तुत किये हैं। इस्लाम के दीपक, आर्यसमाज और इस्लाम प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। आर्योदय (दो भाग) संस्कृत में काव्य हैं, कौसे-क़ज़ा उर्दू कविता-संग्रह।
आपने १०० से ऊपर ट्रैक्ट और १०० के लगभग उच्चकोटि के ग्रंथों का निर्माण किया है। जीवन के अन्तिम क्षण तक आपकी लेखनी तीव्रता से चलती रही।
२९ अगस्त १९६८ को ८७ वर्ष की अवस्था में आपका प्रयाग में देहावसान हुआ। आपकी स्मृति में १२०० रुपये का 'गंगाप्रसाद पुरस्कार दिया जाता है।