समय आने पर जिस दयानन्द के समक्ष सभी पण्डित, आचार्य, वैयाकरण, योगी, यति, पादरी, मौलवी, मठाधीश तथा आस्तिक, नास्तिक एवं संशयवादी चिन्तक निस्तेज और निष्प्रभ सिद्ध हुए, उसकी प्रतिभा जिस प्रतिभा के सामने हतप्रभ हुई थी, उसके पाण्डित्य ने जिसके पाण्डित्य का लोहा माना था, उसकी विचारशक्ति ने जिसकी विचारशक्ति का अनुसरण किया था; कैसा अद्भुत होगा ऐसी प्रतिभा, पाण्डित्य व विचारशक्ति का स्वामी वह दण्डी साधु!