Swami Brahmmuni Parivrajak Vidyamartand
स्वामी ब्रह्ममुनि परिव्राजक विद्यामार्तण्ड
सत्यार्थप्रकाश के अध्ययन ने इन्हें आर्यसमाज के सिद्धान्तों की और आकृषित किया। फलतः संस्कृत पढ़ने की रूचि उत्पन्न हुई। अष्टाध्यायी प्रणाली से संस्कृत का अध्ययन करने के लिए ये स्वामी पूर्णानन्द जी के निकट रहे। वहां पण्डित ब्रह्मदत्त जिज्ञासु इसके सहपाठी थे। कालान्तर में कशी रहकर पण्डित देवनारायण तिवारी जी से महाभाष्य का अध्ययन किया और अन्य विद्वानों से विविध शास्त्र पढ़े। कुछ काल तक काशी विद्यापीठ में अध्यापन भी किया। प्रथम ये पण्डित प्रियरतन आर्ष नाम से जाने गए। तत्पश्चात २००१ वि. सं. मने स्वामी वेदानन्द तीर्थ से सन्यास की दीक्षा ग्रहण की और स्वामी ब्रह्ममुनि कहलाये। १६ दिसम्बर १९७७ को स्वामी जी का निधन हुआ।