पं० सुन्दरलाल जी के नाम ऋषि दयानन्द के द्वारा लिखे गये १३ मई १८८२ ई० पत्र से ज्ञात होता है कि 'जालन्धर की बहस' शीर्षक से कोई पुस्तक प्रकाशित हुई थी। निश्चय ही उसमें उस शास्त्रार्थ का उल्लेख था, जो २४ सितम्बर १८७७ ई० (आश्विन कृष्ण २, सं० १९३४ वि० सोमवार) को प्रातः ७ बजे जालन्धर में मौलवी अहमद हुसैन से हुआ था। शास्त्रार्थ का विषय था 'पुनर्जन्म और चमत्कार'। पंडित लेखराम द्वारा संगृहीत ऋषि के उर्दू जीवन चरित में इस शास्त्रार्थ के विषय में निम्न उल्लेख पाया जाता है
"यह शास्त्रार्थ पहली बार दिसम्बर १८७७ में पंजाबी प्रेस, लाहौर में छपा था, दूसरी बार जुलाई १८७८ के 'आर्य दर्पण' में छपा, तीसरी बार मिर्जा महोदय ने अपने वजीर प्रेस, स्यालकोट में छपवाया. चौथी बार लाहौर और पांचवी बार आर्यसमाज अमृतसर ने १८८६ ई० में छपवाया। खुद मुसलमानों का फैसला है कि मौलवी साहब कामयाब नहीं हुये और करामात सिद्ध नहीं कर सके।"