Pt. Shivpujansingh Kushwaha 'Pathik'
पं. शिवपूजनसिंह कुशवाहा 'पथिक'
शास्त्रार्थ की भांति लेखबद्व शास्त्रार्थ का महत्त्व भी स्वीकार किया जाना चाहिये। विपक्षियों के प्राक्षेपों का लेखबद्ध उत्तर देने में प्रार्य ज के मनस्वी लेखक पं. शिवपूजनसिंह कुशवाहा को अपूर्व सफलता प्राप्त गई है। आपने अपने विस्तृत स्वाध्याय के बल पर आर्यसमाज के लेखकों में अपना पृथक् स्थान बना लिया है। अब तक विभिन्न पार्यसामाजिक तथा इतर पत्र पत्रिकाओं में आपके सहस्राधिक लेख छप चके होंगे। इसी प्रकार आपकी पुस्तकों की संख्या भी पर्याप्त है। 'नीर क्षीर विवेक' ( माधवमुखमहाचपेटिका ) तथा 'वैदिक सिद्धान्त मार्तण्ड' अापकी शास्त्रार्थ विषयक उल्लेखनीय पुस्तकें हैं। सनातानी पण्डित माधवाचार्य के द्वारा ऋषि दयानन्द और आर्यसमाज पर लगाये गये मिथ्या आरोपों और आक्षेपों का सप्रमाण उत्तर इन पुस्तकों में दिया गया है। इसी प्रकार 'वेद का स्वरूप और प्रामाण्य' नामक स्वामी हरिहरान्द करपात्री रचित पुस्तक का भी आपने उत्तर लिखा है जो पौराणिक भ्रमोच्छेदन के नाम से परोपकारी में धारावाही प्रकाशित हुआ है। इसी प्रकार 'ऋषि दयानन्द तथा आर्षसमाज को समझने में पौरोणिकों का भ्रम' शीर्षक पुस्तक में भी आपने पौराणिकों के मिथ्या आक्षेपों का सप्रमाण उत्तर दिया है। कुशवाहाजी की लेखन शैली उद्धरणप्रधान है फलतः उनकी विस्तृत स्वाध्यायशीलता की द्योतक है। इस समय आप भागवतपुराण की विस्तृत समीक्षा लिख रहे हैं।