Swami Darshananand Sarswati
स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
आर्यसमाज के अद्वितीय दार्शनिक विद्वान् तर्क शिरोमणि स्वामी दर्शना नन्द का जन्म माघ कृष्णा दशमी सं. १९१८ वि. के दिन पंजाब देश के लुधियाना जिलान्तर्गत जगरांवा ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम पं. रामप्रताप शर्मा था। इनका बाल्यकाल का नाम कृपाराम था। कृपाराम ने प्रारम्भिक युवावस्था में व्यापार व्यवसाय में रुचि दिखलाई परन्तु शीघ्र ही उन पर वैराग्य का रंग चढ़ गया। इन्होंने स्वामी दयानन्द के साक्षात् उपदेश सुने थे। आर्यसमाज की लगन लग जाने पर पं. कृपाराम ने काशी को अपना कार्यक्षेत्र बनाया । यहाँ १० सितम्बर १८८९ को आपने तिमिरनाशक प्रेस की स्थापना की तथा व्याकरण, दर्शन तथा अन्य शास्त्रों के ग्रन्थों को कम मूल्य में प्रकाशित कर बेचते रहे । काशी में रह कर पं. कृपाराम ने अपने समय के अद्वितीय विद्वान् पं. हरनाथ शास्त्री (स्वामी मनीषानन्द) से दर्शनों का विशद अध्ययन किया।
अब पं. कृपाराम स्वामी दर्शनानन्द के रूप में आर्यसमाज के प्रचार कार्य में समग्रतः अवतीर्ण हुये । ग्रन्थ लेखन, शास्त्रार्थ तथा गुरुकुल स्थापन स्वामी दर्शनानन्द की विविध प्रवृत्तियों ने वैदिक धर्म के व्यापक प्रचार में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है।
११ मई १९१३ को स्वामी जी दिवंगत हुए। उनके रचित ग्रंथों की संख्या ३०० से अधिक है।