जो मनुष्य न्याय शास्त्रको ठीक प्रकार से जान जाता है उसको कोई चालाक धोका नही देसकता सांप्रदायिक तथा वैज्ञानिक बिवा दो में जो बातें साधारण भी दृष्टि में कठिन मालम होती हो वह इस दर्शन के ज्ञाता को अति सुगम हैं और जिन प्रश्नो का उत्तर देने में संसार के बडे २ मत चकराते हैं उसका उत्तर इस विज्ञान का ज्ञाता बड़ी सुगमता से दे सकता है। सम्प्रति आत्मिक सिद्धान्ता के ज्ञाना भावा से मनुष्यों में अनेक प्रकार के झगड़े होरहे है । और इस दर्शन के न जानने से वे झगड़े समय समय पर विकट रूप धारण करलेते हैं। अतः हमारा निश्चय होगया है कि यथाशा पुराने ऋषियों के विचारों को भाषा में अनवाद करके देशवासिया को यथार्थ साधनों का ज्ञान कराने का उद्योग करेंगे। इन दर्शनी का अनुवाद क्रमशः न्याय दर्शन से प्रारम्भ होकर आपकी दृष्टि में आता रहेगा। यदि एक व्यक्ति को भी इसके अध्ययन से पूरा लाभ हुआ तो अनुवादक अपना परिश्रम सफल समझेगा।
दर्शनानन्द सरस्वती