Acharya Gyaneshvar Arya
आचार्य ज्ञानेश्वर आर्य
बीकानेर के एक प्रतिष्ठित स्वर्णकार परिवार मे जन्मे आचार्य जी एम. ए. प्रथम वर्ष का अध्ययन करते हुए युवा अवस्था मे ही आर्य समाज के संपर्क में आये । लगभग २५ वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया । गृह त्याग के कुछ दिनों बाद ही आर्य जगत की विभूति योगनिष्ठ स्वामी सत्यपति जी से संपर्क हुआ । उनके निर्देश अनुसार आर्ष गुरुकुल कालवा मे आचार्य बलदेव जी नैष्ठिक के पास लगभग साढ़े छः वर्ष तक व्याकरण महाभाष्य का अध्ययन किया एवं कुछ अध्यापन भी किया ।
इसके पश्चात ज्वालापुर मे गुरुकुल काँगड़ी के उपकुलपति प्रो. रामप्रसाद जी वेदालंकार से निरुक्त शास्त्र का अध्ययन किया तथा स्वामी दिव्यानन्द जी से काव्यालंकार व छंदशास्त्र का भी कुछ अध्ययन किया । पूज्य स्वामी सत्यपति जी के साथ विभिन्न प्रान्तों मे परिभ्रमण करते हुए पाँच दर्शनों व उपनिषदों का अध्ययन किया । इसके अनन्तर देढ़ वर्ष तक वैदिक धर्म का प्रचार एवं योग शिविरों का आयोजन किया ।
पूज्य स्वामी सत्यपति जी की विशेष प्रेरणा से उच्च स्तर के योगाभ्यास व दर्शनों के अध्ययन हेतु सन् १९८६ में आर्यवन, रोजड, गुजरात में आयोजित दर्शन योग प्रशिक्षण शिविर मे सम्मिलित हुए, यह शिविर लगभग ढ़ाई वर्ष चला । प्रतिभागियों को विशेष आध्यात्मिक उपलब्धियां प्राप्त हुई । जिससे इस योजना को स्थायी रूप देने का विचार किया गया तो पूज्य स्वामी सत्यपति जी ने दर्शन योग महाविद्यालय नाम से आगे इस कार्य को चलाने का दायित्व उन्हें तथा उपाध्याय विवेक भूषण जी (वर्तमान नाम स्वामी विवेकानन्द जी परिव्राजक) को दिया । इस महाविद्यालय से ६०(साठ) से भी अधिक आदर्श आचरण युक्त युवा दार्शनिक विद्वान तैयार हुए हैं इनमे से १३ संन्यासी भी आर्य जगत को प्राप्त हुए हैं ।
आचार्य ज्ञानेश्वर जी ने देश विदेश मे सैकडों क्रियात्मक ध्यान योग प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से हजारों साधकों का अध्यात्म मार्ग प्रशस्त किया ।