Pt. Bhagvaddutt B. A. Research Scholar
पं. भगवद्दत्त बी.ए. रिसर्च स्कॉलर
पं. भगवद्दत्त बी.ए. रिसर्च स्कॉलर आर्यसमाज में वैदिक शोध के सही अर्थ में प्रवर्तक पं. भगवद्दत्त ही कहे जा सकते हैं। हिन्दी में लिखे गए उनके शोधपरक ग्रन्थों का आशय समझने के लिए पश्चिमी विद्वानों को हिन्दी सीखनी पढ़ी थी। कहने को तो वे मात्र बी.ए. ही थे किन्तु उनके शोध निष्कर्ष बड़े-बड़े प्राच्यविद्याविदों को चमत्कृत कर देते थे तथा उन्हें अपना मत बदलने के लिए विवश कर देते थे। उनका जन्म अमृतसर में २७ अक्टूबर १८६३ को लाला चन्दनलाल के यहाँ हुआ था। १६१५ में बी.ए. करने के पश्चात् वे सर्वात्मना वैदिक अध्ययन और शोध में लग गए। कुछ काल डी.ए.वी. कॉलेज लाहौर में अध्यापन करने के पश्चात महात्मा हंसराज के अनुरोध से वे उसी कॉलेज के अनुसंधान विभाग में आ गए तथा १६ वर्ष तक इसी कार्य में लगे रहे। इस अवधि में उन्होंने कॉलेज के शोध पुस्तकालय के लिए ७००० पांडुलिपियों का संग्रह किया और अनेक ग्रंथों का लेखन एवं संपादन किया। देश विभाजन के पश्चात वे दिल्ली आ गए और पंजाबी बाग में रह कर पुनः लेखन एवं शोध में लग गए । परोपकारिणी सभा ने १६२३ में उन्हें अपना सदस्य मनोनीत किया। २२ नवबंर १६६८ को उनका निधन हो गया। उनके द्वारा लिखित व सम्पादित ग्रन्थ निम्न हैं- वैदिक वाङ्मय का इतिहास, ऋग्वेद पर व्याख्यान, ऋमंत्र व्याख्या, वेद विद्या निदर्शन, निरुक्त भाषा भाष्य, अथर्ववेदीया पञ्चपटलिका, अथर्ववेदीया माण्डूकी शिक्षा, बैजवाप गृह्य सूत्र संकलन, आथर्वण ज्योतिष, धनुर्वेद का इतिहास Extra Ordinary Scientific Knowledge in Vedic Works, Western Indologists: A Study in Motives.